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समेट कर आँसुवो को आंखों में सैलाब बनाये बैठा हूँ।

समेट कर आँसुवो को आंखों में सैलाब बनाये बैठा हूँ।
खुद की खातिर कम तेरे लिए खुद को नायाब बनाये बैठा हूँ।
और तू कहे तो एक पल न लगने दूँ जान जाने में।
पर तुझ संग जिंदगी जीने का फरमान लिए बैठा हूँ।
जिस कदर तू खुद को तन्हा महसूस करती है हर लम्हे में 
इन लम्हों से पूछ मैं तन्हाइयो का समसान लिए बैठा हूँ ।

©A Malhotra
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