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#अज्ञेय जी की क़लम से👇 मन बहुत सोचता है कि उदास

#अज्ञेय जी की क़लम से👇

मन बहुत सोचता है कि उदास न हो
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाये?

शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले,
पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाव सहा कैसे जाये!

नील आकाश,तैरते से मेघ के टुकड़े;
खुली घासों में दौड़तीं मेघ-छायाएँ,
पहाड़ी नदी: पारदर्श पानी,
धूप-धुले तल के रंगारंग पत्थर,
सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे,
वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो-
इसी पर जो जी में उठे
वह कहा कैसे जाये!

मन बहुत सोचता है कि उदास न हो, न हो,
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाये!
(साभार)

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #मन_बहुत_सोचता_है