इश्क़ का मंज़र चढ़ा ऐसे सब कुछ उसके पीछे भुला गए ना दिन का पता चला रातों का भी चैन गवा गए सब्र का बांध टूट गया जो कुछ बचा था वो भी गवा गए B-*-/=999