प्रेम हंस कुमार जिला 🙏🙏2 मिनिट निकाल कर ज़रूर पढ़े 🙏🙏 ससुर के आखिरी शब्द थे," मेरी बहु नहीं ,तुम मेरा बेटा हो"! भारतीय समाज में नारी की स्थिति अधिक संतोषजनक नहीं है, शादी के बाद यदि स्त्री को किसी कारणवश पति द्वारा त्याग दिया जाता है तो, या तो ससुराल वाले भी उसे त्याग देते हैं, या वह स्त्री ही ससुराल छोड़ कर चली जाती है। ऐसे में यह किस्सा बहुत ही प्रेरणादायक और अपनेआप में अनोखा है।यह कहानी है, करनाल के न्यू चार चमन निवासी नीतू अरोड़ा जी की, जिन्होंने पुत्रवधू होते हुए भी पुत्र से अधिक कर्तव्य निभा कर साबित कर दिया कि रिश्ते केवल नाम और खून के नही अपितु प्यार और अपनेपन के भी होते हैं।मंगतराम जी के पुत्र एवं नीतू जी के पति हर्षदीप ने अपने पिता, पत्नी और दो बेटियों को छोड़कर दूसरी स्त्री के चक्कर में परिवार से किनारा कर लिया, लेकिन पुत्रवधू ने ससुर की बेटे की तरह सेवा कर रिश्तों की दिल छू लेने वाली कहानी लिख दी। नीतू ने तय किया वह बुजुर्ग को अकेला और निराश्रित छोड़कर नहीं जाएगी। वहीं रहेगी। उनके साथ। बेटा बन कर। वह अपनी दो बेटियों के साथ बुजुर्ग ससुर के साथ ही रहीं।नीतू जी अपने ससुर मंगतराम जी की पिछले दस वर्ष से सेवा सुश्रूषा कर रही थीं। मंगतराम जी का बेटा हर्षदीप जब दूसरी महिला के लिए घर छोड़ गया तो मंगतराम ने भी उससे अपने पुत्र होने का हक छीन लिया। उन्होंने बेटे को घर से बेदखल कर दिया और अपनी सारी संपत्ति अपनी पुत्रवधू व अपनी दो पोतियों के नाम कर दी। इतना ही नहीं उन्होंने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अपने निधन के बाद मुखाग्नि का अधिकार भी अपनी पुत्रवधू को ही दिया, जिसे नीतू ने पूरा किया। 80 वर्षीय बुजुर्ग ससुर मंगतराम का गत दिवस लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। अर्थी उठाते समय नीतू खुद आगे आई और ससुर की अर्थी को कंधा दिया। पिता तुल्य ससुर के चले जाने से वह गमजदा थीं। आंखों में आंसू थे, लेकिन वह पूरी मजबूती से अर्थी को लेकर श्मशान घाट पहुंची। उन्हें मुखाग्नि दी और अंतिम संस्कार की हर परंपरा निभाई।करनाल की यह घटना देश की पहली घटना होगी कि पुत्रवधू ने ससुर की अर्थी को कंधा दिया, मुखाग्नि दी। अब अस्थियों के विर्सजन और रस्म पगड़ी की तैयारी कर रही है।ऐसे प्रेरणादायक किस्से हमें बताते हैं कि रिश्ते किसी नाम या खून के मोहताज नही होते बस दिलों में अपनेपन का भाव होना चाहिए। मरौना