#सागर_की_लहरें मन था जिसका सागर जैसा उदार थी जिसकी करनी खुला था जिसका तीसरा चक्षु ज्ञान के मोती संजोये ज्ञान विज्ञान का मिलाप था खुद मे पगला जन हित जो था चाहे लहरें आती जाती रहती हैं अब शांत सुशांत वो सोए कैसे डूबेगी वह नैया क्षितिज पार जो कर जाए बादल ग़रजे बिजली चमकी पानी पानी में मिल जाये देख अनोखा खेल अधिकारों का सर शर्म से झुक जाए क्या एक भी बैरागी न ऐसा जो सहज न्याय दिलाए? ©_suruchi_ मन था जिसका सागर जैसा उदार थी जिसकी करनी खुला था जिसका तीसरा चक्षु ज्ञान के मोती संजोये ज्ञान विज्ञान का मिलाप था खुद मे पगला जन हित जो था चाहे लहरें आती जाती रहती हैं अब शांत सुशांत वो सोए