प्यास नहीं बुझती मन की, ध्यान नहीं रहता खुद का। हर दिन एक नई इच्छा, मन को करती है तंग सदा। रोए मन का हर कोना, रोग कैसा यह आज लगा।। प्यास नहीं बुझती मन की , ध्यान नहीं खुद का रहता ।१। चंचल मन समझे न कुछ भी, आन बसी है चंचलता। रोम रोम कलुषित है जी मानव मन कैसा आज बिंधा। प्यास नहीं बुझती मन की , ध्यान नहीं खुद का रहता ।१। प्यास नहीं बुझती मन की... #प्यासनहींबुझती #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #मौर्यवंशी_मनीष_मन #चंचलमन