कुछ रिश्ते मोबाइल की फोनबुक के नम्बरों की तरह होते है, जो कांटेक्ट लिस्ट से ज्यादा ज़ेहन में सेव होते है। कई बार हम उनसे बात तो करना चाहते है, फ़ोन उठाकर उँगलियाँ उनका नाम खोजने की जगह सीधे नंबर डायल कर देती है। लेकिन फिर कॉल करते ही जब मोबाइल पूछता है सिम 1 या सिम 2 तब अचानक हम उस कॉल को कैन्सल कर देते है। सालों से फ़ोन में सेव किये बिना वो नंबर जो दिमाग को अब भी मुँह जबानी याद है, पता नहीं अब भी सेवा में है या नहीं। ये कतई जरूरी नहीं कि जैसे हमनें अपना नंबर अब तक सिर्फ इसलिए नहीं बदला कि कहीं भूले भटके उस पर कोई कॉल ना आ जाये। वैसे ही शायद उधर वो नंबर कब का बदल गया हो कि कहीं कोई कॉल ना आ जाये। बस इस खुशफहमी में हम गुम रहते है कि सब ठीक ही होगा उधर, अगर कोई परेशानी होती तो अब तक फ़ोन आ गया होता। इतना समय गुजर जाने के बाद भी हमें ये यक़ीन जरूर है कि भले ही हमारी याद आये न आये, हमारा नंबर जरूर मुँहजबानी याद होगा। अब रिश्ते नम्बरों में ही याद रखे जाते है। इधर भी एक नंबर और उधर भी एक नंबर। ©Kapil Kumar #Travelwithkapilkumar #safarnamabykapilkumar #travel_with_kapil_kumar