पूजा पाठ में लोग सबसे पहले दीप प्रज्वलित करते हैं फिर अपनी आराधना देवों की आरती करते हैं और अंत में कपूर से आरती करते हैं इसमें संतुलित लो होती है ना की भक्ति आग होती है इस प्रकार मनुष्य को भी चाहिए कि वह संतुलित दीप की तरह बने मनुष्य अपने जीवन में श्रद्धा सौम्यता सुचिता सत्यवादी था और निर्धनता आदि को यदि अपना आता है तो मैं पूजा-पाठ और आरती के दीए की तरह हो जाता है और आरती की लोगों के प्रति जैसे पूजा-पाठ का धार्मिक अनुष्ठानों में लोग श्रद्धा प्रकट करते हैं और उसकी अग्नि को सिर माथे लगाते हैं उसी प्रकार इस तरह के व्यक्ति को घर परिवार पास पड़ोस से लेकर हर जगह लोग श्रद्धा और सम्मान देते हैं यही सब गुण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम में थे उनका प्रयोग पूरा व्यक्तित्व प्रकाश फैलाने का था दीपावली पर्व पर चलते यह संतुलित यह सदाचार तथा सकारात्मक अभी बनाने की शिक्षा देते हैं दीपों की पंक्तियां देखने में भी आकर्षक लगती हैं जबकि क्रोध हिंसा ईश्वर यादव ए सखी नेता आदि में भी आग की तरह है जो विनाशकारी होते हैं इस तरह की आग से जनधन की हानि होती है और इसमें दूसरों से पहले जैसे अपने घर जलाकर खाक होते हैं उसी प्रकार इस तरह के अंसारी तथा नकारात्मक व्यक्ति का अपना पहला नुकसान होता है इसी तरह के व्यक्ति को लोग हेय दृष्टि से देखते हैं इन्हीं दो प्रवृत्तियों के चलते रावण का वध हुआ इस तरह के स्वभाव वाले लोगों का आत्म बल इतना गिर रहा रहता है कि यदि कोई सामान्य व्यक्ति उनको लाल लाल कर देता है तो वह भी तो जाते हैं श्री राम और रावण की तुलना करते हुए तुलसीदास लिखते हैं कि रावण रथी विरथ रघुवीरा यानी श्रीराम सामान्य व्यक्ति की तरह बिना रथ के पैदल है जबकि रावण के पास तरह-तरह के अर्थशास्त्र से लेफ्ट थे जिस प्रकार सवार होकर वह चलता था लेकिन को प्रवृत्तियों के चलते वह प्रजापति होकर मारा गया मनुष्य को चाहिए कि वह अपना व्यक्तित्व तो दिवाली के दिए जैसा बनाए जिससे लोग ही तो ©Ek villain # दीप जलाने का उद्देश्य #bonding