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बेवज़ह तो हम औंधे मुँह नही गिर सकते उसके लिए चलना


बेवज़ह तो हम औंधे मुँह नही गिर सकते उसके लिए चलना पड़ता है,
अपने लक्ष्य को पाने के लिए दूसरों से ज्यादा, ख़ुद से लड़ना पड़ता है,

ध्यान, धैर्य, विश्वास को पतवार बना बीच समुद्र में उतारना पड़ता है,
दूसरों पर भरोसा कभी नहीं ,अपने लक्ष्य को खुद ही पाना पड़ता है,

मात्र सोच लेने से विचार की अहमियत नही,विचरण करना होता है,
साधु की सादगी यूँ ही ना मिले,नेक सद्कर्म का भ्रमण करना होता है,

समस्त जीवन अनवरत विद्यार्थी होता है, सीखने हेतु विद्या की अर्थी को ढ़ोना पड़ता है,
अर्जुन ने एक बार मे तीर का निशाना सही न भेदा निरन्तर प्रयास की आग में तपाना पड़ता है।
 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 21. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..!

👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8)  में लिखें..!

👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..!

👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!

बेवज़ह तो हम औंधे मुँह नही गिर सकते उसके लिए चलना पड़ता है,
अपने लक्ष्य को पाने के लिए दूसरों से ज्यादा, ख़ुद से लड़ना पड़ता है,

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दूसरों पर भरोसा कभी नहीं ,अपने लक्ष्य को खुद ही पाना पड़ता है,

मात्र सोच लेने से विचार की अहमियत नही,विचरण करना होता है,
साधु की सादगी यूँ ही ना मिले,नेक सद्कर्म का भ्रमण करना होता है,

समस्त जीवन अनवरत विद्यार्थी होता है, सीखने हेतु विद्या की अर्थी को ढ़ोना पड़ता है,
अर्जुन ने एक बार मे तीर का निशाना सही न भेदा निरन्तर प्रयास की आग में तपाना पड़ता है।
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👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!