बटवारा रिश्तों का, हरगिज़ जायज नहीं, बेवजह जज्बातों का बिखरना, हरगिज़ जायज नहीं, बटवारा नाम का शब्द ही, रिश्तों में जायज नहीं। रिश्ता तो अनमोल होता है, जो अजनबी इंसान को भी, एक बना देता है। आपसी रिश्तों से बनता है, समाज का पर्याय। रिश्तों का स्वरूप अलग अलग होता है, लेकिन ज़ज्बात तो सच्चा होता है, चाहे वह कोई भी रिश्ता हो, रिश्ता सिर्फ इंसानों में नहीं होता, निर्जीव चीजों से भी हमारा रिश्ता जुड़ा होता है, जैसे सुबह में चाय के साथ नाता हमारा अनमोल है, और रातों में ख्वाबों से रिश्ता पुराना है। रिश्तों में बंटवारे का कारण होता है खुद का अहम, रिश्तों के मायने को समझो, आप सी टकराव मिटाकर बंटवारे को रोको, जिंदगी मिली है तो, क्या ग़ैर और क्या पराया, सब अपने हैं और हम भी उनके है। -Nitesh Prajapati — % & ♥️ Challenge-831 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।