प्रभात नही गाँव में मेरे अजोर होता है भानू उदय नही गाँव में मेरे दिन चढ़ जाता है, माॅर्निंग वाॅक का इनके पास वक्त नही गाँव के लोग दिन चढ़ने से पहले खेत में होते है, नास्ता इनको टेबल,कुर्सी पर नही चाय कटोरी ,प्लेट में खेतों की माटी में मिलता है, और उस वक्त खेत में बैठकर जो चाय का स्वाद आता है दार्जिलिंग की चाय भी उसके सामने बेमोल है, गाँव में मेरे बच्चे स्कूल नही पाठशाला जाते है शिक्षक सर जी नही,गुरूजी ,आचार्य जी कहलाते है, अभिभावक वाहन से छोड़ने नही बस्ता उठा बच्चा स्वयं अपने पैरों से जाता है, बस्ता किसी बडे़ के हाथों में नही बच्चे खुद अपनी पीठ पर उठा जाते है, खैर छोडो़...फिर भी हम गाँव के गंवार ही तो है ठीक ही तो है अपने कदमों माता-पिता बचपन में संभलना सिखा दिया तो आज खुद पैरों से मीलों की दूरी नाप जाता हूँ बिन रूके बिन थके,कई बार प्यास को भी मात दे जाता हूँ, रही वजन उठाने की बात ,तो किसान है समूचे देश का उठा रखा है, फिर भी अजमाने का ख्याल़ आये तो बेहिचक गाँव हमारे चले आना..!! #बेवज़ह के शौक हम रखते नही है झूठी दिखावेबाजी़ हम करते नही है, शहरों की भाषा में हम गाँव के गंवार है स्वीकार है जनाब यह उपाधि हमें खानदानी है किसी का अपमान सपने में भी करते नही है..!! # स्वीकार Deepak Raj Patalwansi