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" हाँ कुछ -कुछ ऐसा भी " ( अनुशीर्षक ) तुम्हें पत

" हाँ कुछ -कुछ ऐसा भी "
( अनुशीर्षक ) 

तुम्हें पता है 12 वीं में मैंने हिंदी ली थी अपने मैन सब्जेक्ट्स के साथ ऑप्शन में मैथ्स और कंप्यूटर साइंन्स था, पर मुझे कोई इंटरस्ट ना था जी इन सब में, फिर क्या रख ली हिंदी तो रख ली, भाई साइंन्स स्ट्रीम से जान छुड़ाकर मैंने कॉमर्स लिया था, वापिस से क्यूँ खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारूं,

 तो अच्छा लगता था हिंदी वाले मास्टर जी का लेक्चर  पहले ही बता चुकी हूँ वे उत्तर प्रदेश से हैं, मुझे इंतज़ार होता था पैरे के खत्म होने का, उसके बाद जो सर का रिव्यु होता था ना वो अलग ही दुनिया में ले जाते थे, और मैं खो जाती थी उस दुनिया में किसी तितली की तरह,

  जल्द ही मैं सर की फेवरिट स्टूडेंट बन गयी थी, वो उनका हर काम मुझे सौंपते थे, उनका कहना था मैं परीक्षाओं में प्रश्नों के उत्तर बहुत सटीक दिया करती हूँ, वे ज्यादा प्रभावित मेरे सुलेख से थे, उन्हें हिंदी साहित्य का गूढ ज्ञान था, और है वह अतुलनीय है, और शायद वे मुझ में खुद को देखते थे, जब मैं अपनी छोटी -छोटी कविताएं उन्हें पढ़ाया करती थी,
" हाँ कुछ -कुछ ऐसा भी "
( अनुशीर्षक ) 

तुम्हें पता है 12 वीं में मैंने हिंदी ली थी अपने मैन सब्जेक्ट्स के साथ ऑप्शन में मैथ्स और कंप्यूटर साइंन्स था, पर मुझे कोई इंटरस्ट ना था जी इन सब में, फिर क्या रख ली हिंदी तो रख ली, भाई साइंन्स स्ट्रीम से जान छुड़ाकर मैंने कॉमर्स लिया था, वापिस से क्यूँ खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारूं,

 तो अच्छा लगता था हिंदी वाले मास्टर जी का लेक्चर  पहले ही बता चुकी हूँ वे उत्तर प्रदेश से हैं, मुझे इंतज़ार होता था पैरे के खत्म होने का, उसके बाद जो सर का रिव्यु होता था ना वो अलग ही दुनिया में ले जाते थे, और मैं खो जाती थी उस दुनिया में किसी तितली की तरह,

  जल्द ही मैं सर की फेवरिट स्टूडेंट बन गयी थी, वो उनका हर काम मुझे सौंपते थे, उनका कहना था मैं परीक्षाओं में प्रश्नों के उत्तर बहुत सटीक दिया करती हूँ, वे ज्यादा प्रभावित मेरे सुलेख से थे, उन्हें हिंदी साहित्य का गूढ ज्ञान था, और है वह अतुलनीय है, और शायद वे मुझ में खुद को देखते थे, जब मैं अपनी छोटी -छोटी कविताएं उन्हें पढ़ाया करती थी,
alpanabhardwaj6740

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