मैं अब और नही चल सकता, मुझको मज़बूर ना कर । रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ मैं अब जज्बातों को , कागजों पर नही लिखता हूँ । रूबरू हो दुनिया मुझसे , ऐसे शब्दों को नही गढ़ता हूँ ॥ मंजिलों को पाने का हौसला , अब मुझमें नही है । दुनिया से संघर्ष करूँ , अब इस मन में तमन्ना नही है॥ कोयला सा बन कर रहना चाहता हूँ , मुझे कोहिनूर ना कर । रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ अब मैं ना अश्कों को लिखता हूँ , ना मोहब्बत को सुनाता हूँ । आशिकी के अधूरे सफ़र में , बस ख़ुद को लिखता हूँ गुनगुनाता हूँ ॥ मेरे हांथों में गुमनामी की लकीरें हैं , नाम मेरे अपनी तक़दीर ना कर । रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ महफ़िलों में जाने तमन्ना नही हैं , ना मुस्कुराने का हुनर रख़ता हूँ । वाहवाही की अभिलाषा नही हैं , ना तालियों का शौक रख़ता हूँ ॥ अब क्या देखा मुझमें , पहले तो पागल आशिक़ कहती थी । हर पल बातों को समेटते हो , ये क्या लिखते हो कहती थी ॥ पहले दुनिया को लिखता था , तुम को सुनाया करता था । तेरे जाने के बाद तुमको लिखता था , दुनिया को सुनता था ॥ तन्हाइयों से होकर गुज़ारा हैं सफ़र , अब मेरे साथ ना चल । रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ तुम को लिखकर मशहूर तो हो जाऊं , पर तुम याद आती हो । तुम को पढ़कर मशहूर तो हो जाऊं , पर तुम दिल में समां जाती हो ॥ तुमको सुनाकर मशहूर तो हो जाऊं , पर तुम गीत बन जाती हो ॥ तुम्हारे साथ चल तो सकता हूँ , लेकिन तुम मीत बन जाती हो । मैं लौट आया हूँ छोड़ कर गीत-ए-महफ़िल की राह , मेरा इन्तजार ना कर । रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ स्वरचित विकास सैनी श्रीमाली #love #isq