प्रश्न अक्सर रहता है, ये मेरे मस्तिष्क में कब और कैसे आया ,ये धर्म अस्तित्व में हैं क्या और किन श्ब्दों में है बयां, धर्म की परिभाषा उर्दू हैं या हिंदी या है पंजाबी, कौन सी है धर्म की भाषा भिन्न है मत यहां सबके, अभिन्न ये ख्याल है धर्म के नाम पर, जेहन में क्यूं इतने सवाल है कोई पूजे शिव को,कोई करे अल्लाह से दिन शुरू पुकारे कोई यीशु को,तो कहे कोई करे मैहर वाहेगुरु कोई पढ़ें बाइबिल तो,पढ़े कोई रामायण महाभारत पड़ता कोई ग्रंथ साहिब,तो पड़े कोई कुरान की आयत क्यूं करते है सभी यहां,धर्म के नाम पर विरोध धर्म का क्या नहीं हैं कोई अर्थ,इन ग्रन्थों में मानवता के मर्म का क्या लिखा है सभी में,कि भिन्न भिन्न है धर्म का आधार फिर क्यूं है धर्म के नाम पर,कुंठित अधिकांशतः विचार क्या कभी कहा है शिव ने,मेरे लिए तुम मस्जिद तोड़ो क्या कहा है कभी अल्लाह ने,मेरे लिए तुम सर एक दूजे का फोड़ों क्या कभी प्रकृति ने किया,साथ तुम्हारे भेदभाव क्या कभी जीवन और मृत्यु ने,बदले अपने भाव ओम् में भी हैं संगीत वही है,जो अल्लाह की अजान में उठाते हैं सभी हाथ ही,उस अनादि अनन्त के सम्मान में एक सा है संगीत सबका,एक स्वर एक ही हैं धुन कहता है धर्म क्या तुझसे,आवाज़ तू हृदय की सुन फिर क्यूं आपस में धर्म के नाम पर,लोगों में इतना मतभेद हैं क्यूं करते हो कर्म वो जिस पर,अब धर्म को भी हो रहा खेद हैं उस ईश्वर ने तो हम सबको बनाया है, एक जैसा प्राणी क्यूं बना धर्म अपना,बनें हम उस ईश्वर से भी अधिक ज्ञानी ना रखो द्वेष बैर आपस में,ना विचारों में रखो तुम द्वंद क्यूं ठगते हो स्वयं को,कर्म से करो परिभाषित धर्म को स्वछंद धर्म की दो नूतन परिभाषा,बना मानवता को पर्याय साथ चलकर एक दूजे के,लिखो धर्म का नया अध्ध्याय रखो प्रवृति सद्भाव की,जो ईश्वर को भाती भूल निज स्वार्थ को,बनों एक दूजे के साथी सभी धर्मों में हैं निहित, मानवता का सार रहे संग एक मत,और करें एक दूजे से प्यार _जागृति@***शर्मा..."अजनबी" ©jagriti sharma` #अजनबी_जागृति #धर्म #j@griti_sharma