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हर सम्त अँधेरा बढ़ता जा रहा है, जैसे प्रकाश का वजूद

हर सम्त अँधेरा बढ़ता जा रहा है,
जैसे प्रकाश का वजूद घटता जा रहा है..!

गुनाहग़ारों की बन रही है लम्बी फ़ेहरिस्त,
अंधकार को जुर्म का पालनहार बता रहा है..!

डगमगा रहा है भरोसा प्रकाश का,
दीया उम्मीद का बुझता नज़र आ रहा है..!

भोर की आस अब न रही किसी को,
साँझ की आड़ में कुकर्म छिपा रहा है..!

पर कब तक बचेगा प्रकाश के तेज़ से,
उम्मीद का सूरज अँधेरे को रौशनी दिखा रहा है..!

चरमरा जायेगा यूँ ही धीरे धीरे अंधेरा,
मन हौंसले की किरण से जगमगा रहा है..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #landscape #andhera