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कंगन - स्त्री मन के भावों को समाकर कुछ पंक्तियाँ

कंगन - स्त्री मन के भावों को समाकर कुछ पंक्तियाँ 

संभाले प्रीत का बंधन,
मेरे काँच के कंगन,
करते पिया सा स्पंदन,
मेरे कुंदन के कंगन। 
घोले महकता चंदन,
मेरे लाख के कंगन।

करते मन नंदन,
मेरे मोती के कंगन। 
करते प्रिय का वंदन,
मेरे हीरे के कंगन। 

मिटाते दबे क्रंदन,
मेरे खनकते कंगन। 
कराते प्रेम अभिनंदन,
मेरे चमकते कंगन। 

मेरे कंगन,
लुभावन, मनभावन,
मेरे कंगन
सुहावन, रिझावन। 

कवि आनंद दाधीच, भारत

©Anand Dadhich #kangan #symboloflove #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia #indianpoets #nightvibes
कंगन - स्त्री मन के भावों को समाकर कुछ पंक्तियाँ 

संभाले प्रीत का बंधन,
मेरे काँच के कंगन,
करते पिया सा स्पंदन,
मेरे कुंदन के कंगन। 
घोले महकता चंदन,
मेरे लाख के कंगन।

करते मन नंदन,
मेरे मोती के कंगन। 
करते प्रिय का वंदन,
मेरे हीरे के कंगन। 

मिटाते दबे क्रंदन,
मेरे खनकते कंगन। 
कराते प्रेम अभिनंदन,
मेरे चमकते कंगन। 

मेरे कंगन,
लुभावन, मनभावन,
मेरे कंगन
सुहावन, रिझावन। 

कवि आनंद दाधीच, भारत

©Anand Dadhich #kangan #symboloflove #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia #indianpoets #nightvibes