सादगी मेें लिपटी मुरत कमाल की तू ही है हुस्न की मल्लिका क़ायनात मेें नही है कोई तुम सा, ए मेरी बहारों की मल्लिका जिस्म मोतियों सा चमकता, रुखसार पर 'चाँद' की लाली है मुस्कान पर लाखों सूरज वार दूँ, मुंह पर 'हया' की लाली है शर्माती जैसे शाम हो चुकी, बलखाती जैसे घूम रही धरती है बहती कल-कल सरिता सी, और पवित्र गंगा की धारा सी है सीता सा जीवन है, 'राधा' बन प्रेम की स्वामिनी कहलाती है प्रेम के सागर में मिलकर, ख़ुद 'अस्तित्व' विहीन हो जाती है यूँ तो पीने का शौक नही, पर तेरी नज़र से पीने की चाहत है लाख हसीन नज़ारे जहान मेें, 'नजरों' को सिर्फ़ तेरी आदत है सुकून का संगीत निकलता है तेरी हर साँस से प्रियतमा मेरी तेरी सांसो से अपनी साँसे मिला लूँ,यही ख़ुदा की इबादत है रचना क्रमांक:- 25 हुस्न की मल्लिका #collabwithकोराकाग़ज़ #kkr2022 #kkrहुस्नकीमलिका #कोराकाग़ज़ #रमज़ानकोराकाग़ज़ #kkrkrishnavijay