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#क़ैदी कितना प्यारा था अपना गाँव का घरौंदा। शीत



#क़ैदी

कितना प्यारा था अपना गाँव का घरौंदा।
शीतल पेय स्वच्छ वायु और खेतों का दाना।।
खुले आसमान के तले मन भर विचर।।
नव जीवन की तलाश में उड़ान क्या भरी।
ऊँची- ऊँची ईमारत में क़ैदी हो गई बेबस जिंदगी।।
वक्त की रफ्तार में जाने कहाँ खो गई सुनहरी उषा।
जगमगाते लैम्पों ने निगल गई सिंदूरी सांझ की आभा।।
दफ्तर, कार, लिफ्ट, इस क़ैद से उस क़ैद में घुटताना।
खुले नर्म गुनगुनी वादियों को आँखो में भरना है मन।
ज़रुरत बन गई है अब बोतल का पानी और आहार डिब्बा बंद।।

अम्बिका मल्लिक ✍️

©Ambika Mallik
  #क़ैदी