डायरी के बंद पन्ने ---------------------- यकीनन फिदा हुआ था तुम्हारी नायाब खूबसूरती पर पर ख्वाहिशों में तुम नहीं थी तुम्हारे रास्ते से कुछ अलग था मेरा रास्ता जिसमें थे कुछ दर्द के सैलाब कुछ अधूरे से ख्वाब जिसे मैने घुट घुट के सही थी किरदार कहां बदलते हैं मौसमों की तरह तुम देखो तो सही आज भी मै जीता हूँ फक्कड़ों की तरह तुम उदास हो तो आओ उसी जगह जहाँ मै अक्सर जाता हूँ तारकोल की चमकती सड़क दोनो ओर घिरे जंगल के बीचो बीच इक छोटे से आशियाने में कुछ पल बिताता हुँ पता है वहाँ आँखे तो नम होती है पर सच कहुँ तो कहां कोई गम होती है तुम आना जरुर आना तभी तो खुलेंगे डायरी के बंद पन्ने तुम पढ़कर बस खामोश रहना जो कुछ भी कहना बस नजरों से क्युँ कि वाकई तुम दिल से भी खूबसूरत हो! संजय श्रीवास्तव डायरी के बंद पन्ने