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ज़ीस्त-ओ-ज़मीन पर सब्ज़बाग लगता है। जन्नत से उतरा हुआ

ज़ीस्त-ओ-ज़मीन पर सब्ज़बाग लगता है।
जन्नत से उतरा हुआ तेरा शबाब लगता है।
ख़्वाहिशमंद रसोड़े की मालकिन हो तुम!
यूँ नज़रों का प्यार पनीर-पुलाव लगता है।

जब  मुस्कुराती हो  फूल झड़ने लग जाते हैं!
तेरी महंगी सी महक़ को तड़ने लग जाते हैं।
तेरे हुस्न की ख़ुश्बू में कोई तो बात है जाना!
देखते  ही  दोस्त  मुझसे लड़ने लग जाते हैं।

तेरे आमंत्रण पर दौड़ते हुए आते हैं।
कितने ही निमंत्रण छोड़ते हुए आते हैं।
दीवाना कर देता है तेरे लफ़्ज़ों  का  तड़का!
यूँ तेरी सोहबत में दो निवाले तोड़ने आते हैं। 🌹

ज़ीस्त-ओ-ज़मीन पर सब्ज़बाग लगता है।
जन्नत से उतरा हुआ तेरा शबाब लगता है।
ख़्वाहिशमंद रसोड़े की मालकिन हो तुम!
यूँ नज़रों का प्यार पनीर-पुलाव लगता है।

जब  मुस्कुराती हो  फूल झड़ने लग जाते हैं!
ज़ीस्त-ओ-ज़मीन पर सब्ज़बाग लगता है।
जन्नत से उतरा हुआ तेरा शबाब लगता है।
ख़्वाहिशमंद रसोड़े की मालकिन हो तुम!
यूँ नज़रों का प्यार पनीर-पुलाव लगता है।

जब  मुस्कुराती हो  फूल झड़ने लग जाते हैं!
तेरी महंगी सी महक़ को तड़ने लग जाते हैं।
तेरे हुस्न की ख़ुश्बू में कोई तो बात है जाना!
देखते  ही  दोस्त  मुझसे लड़ने लग जाते हैं।

तेरे आमंत्रण पर दौड़ते हुए आते हैं।
कितने ही निमंत्रण छोड़ते हुए आते हैं।
दीवाना कर देता है तेरे लफ़्ज़ों  का  तड़का!
यूँ तेरी सोहबत में दो निवाले तोड़ने आते हैं। 🌹

ज़ीस्त-ओ-ज़मीन पर सब्ज़बाग लगता है।
जन्नत से उतरा हुआ तेरा शबाब लगता है।
ख़्वाहिशमंद रसोड़े की मालकिन हो तुम!
यूँ नज़रों का प्यार पनीर-पुलाव लगता है।

जब  मुस्कुराती हो  फूल झड़ने लग जाते हैं!