पत्रकारिता का है ये बदलता स्वरूप युग युगान्तर यूँ ही संग चलता रहे सत्रधारिता विहीन विफलता का कूप पथ पथान्तर होने से सम्भलता रहे दृष्टि हो सम्यक् तो विस्थापित हो चूक यदि मुद्दे हों विषयक पत्रकारी अचूक फैलेगा सम भाव ज्यों सूरज की धूप दीन दुखियों का लो पक्ष बैठो न मूक सम समान्तर समय यूँ बदलता रहे पख पक्षान्तर यूँही रोज टलता रहे पत्रकारिता का है ये बदलता स्वरूप युग युगान्तर यूँ ही संग चलता रहे प्रकाश प्रकाश