बेमतलब की रौशनी में, अनमोल अन्धेरे खो दिए। गुज़री रात के इन्तज़ार में, कितने सवेरे खो दिए। कुछ गहरे समंदर सी आँखें, कुछ गेसू खनेरे खो दिए। वो रो पड़े, हम हँस दिए, दोनों ने बसेरे खो दिए। वो आग ज़ालिम थी कि अगर, वो राख़ मुलायम बिस्तर थी, उस जली राख़ के चारकोल से, कुछ सपने उकेरे खो दिए। #Nazm #urdu