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दर्द-ए-ग़म की दास्ताँ कहूँ या कह दूँ 'ज़िंदगी' को

दर्द-ए-ग़म की दास्ताँ कहूँ या कह दूँ 'ज़िंदगी' को बेवफ़ा
सुलगती आग तन्हाई की,  अब सुन्दर कहाँ कोई? फ़ज़ा

साँसों को चलना था बस, आह निकलती, अब सब ज़दा
ख़ामोशी की चादर ओढ़े, जुबान को मिली बस यह सज़ा

थिरकते थे  यह पांव यूँही मतवाली "मौज" मेें बरबस मेरे 
भूल बैठे है आज ख़ुद को यह, लड़खड़ाते है यूँ यदा-कदा

आज बदली इन 'फ़िज़ाओं' नेे, मौसम की  इन अदाओं ने
दहकते अंगारे  सुलगा दिए, 'वक़्त'  की  बहकी हवाओं ने

अट्टहास करती हर गली और कूचा हँसती ज़िंदगी मुझ पर
क्या था तेरा जो गुमा कर बैठा, सवालिया निशान मुझ पर

ख़ामोश निगाहें, मौन अधर, झुकी नज़र, धड़कता दिल ये
साँसों से निकलती आह सुनकर बस, तड़पता रहा दिल ये  ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1109 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
दर्द-ए-ग़म की दास्ताँ कहूँ या कह दूँ 'ज़िंदगी' को बेवफ़ा
सुलगती आग तन्हाई की,  अब सुन्दर कहाँ कोई? फ़ज़ा

साँसों को चलना था बस, आह निकलती, अब सब ज़दा
ख़ामोशी की चादर ओढ़े, जुबान को मिली बस यह सज़ा

थिरकते थे  यह पांव यूँही मतवाली "मौज" मेें बरबस मेरे 
भूल बैठे है आज ख़ुद को यह, लड़खड़ाते है यूँ यदा-कदा

आज बदली इन 'फ़िज़ाओं' नेे, मौसम की  इन अदाओं ने
दहकते अंगारे  सुलगा दिए, 'वक़्त'  की  बहकी हवाओं ने

अट्टहास करती हर गली और कूचा हँसती ज़िंदगी मुझ पर
क्या था तेरा जो गुमा कर बैठा, सवालिया निशान मुझ पर

ख़ामोश निगाहें, मौन अधर, झुकी नज़र, धड़कता दिल ये
साँसों से निकलती आह सुनकर बस, तड़पता रहा दिल ये  ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1109 #collabwithकोराकाग़ज़

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krishvj9297

Krish Vj

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