पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु, नभ सब ज़िन्दगी का आह्वान, प्रकृति के पांचों मूल तत्व,भगवान् का अद्भुत वरदान। जीवन की हर ज़रूरत का प्रकृति ने मिटाया व्यवधान, मग़र प्रकृति के विनाश का भी मानव ही बना सामान। पृथ्वी रैन बसेरा है मानव, जानवर, जीव-जन्तु सबका, कर देता मानव ही दूषित, दबा प्लास्टिक ले रहा जान। जल ही जीवन है,मत जाने दो व्यर्थ बोलते सब विद्वान, दुरुपयोग इसका आम हो गया,जीवन हो गया निष्प्राण। अग्नि मानी जाती रही है वर्षों से शुद्धिकरण का पर्याय, जला जला कर प्लास्टिक हो रहा इस का भी अपमान। वायु को बनाया था हमारी साँसों को बढ़ाने का ज़रिया, प्रदूषित कर मानव ने धुएं से कमाया मौत का सामान। नभ के सूरज, चाँद, सितारों ने छिपा रखा अथाह ज्ञान, भूमंडलीय ऊष्मीकरण से है ओज़ोन परत का नुकसान। प्रकृति के तत्वों को खुद ही अभिशाप बना रहा इन्सान, जीवन के मूल्यों को निराधार ही बस बना रहा इन्सान। कीमत चुकानी पड़ेगी जब इस विनाश की प्रत्येक को, पतन हो रहा धीरे-धीरे सृष्टि का, अलोप हो रहा प्राण। ज्ञान ज़रूरी है अपने ही प्राणों के अब संरक्षण के लिए, बचाना है जीवन को, जागरूकता का ज़रूरी अभियान। पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु, नभ सब ज़िन्दगी का आह्वान, प्रकृति के पांचों मूल तत्व,भगवान् का अद्भुत वरदान। जीवन की हर ज़रूरत का प्रकृति ने मिटाया व्यवधान, मग़र प्रकृति के विनाश का भी मानव ही बना सामान। पृथ्वी रैन बसेरा है मानव, जानवर, जीव-जन्तु सबका, कर देता मानव ही दूषित, दबा प्लास्टिक ले रहा जान।