वो बेटा बनने की चाहत मे, बेटी बन्ना भूल गई। कांधे से कांधा मिलाने की होड़ में, अपनी अस्मिता छोड़ गई। वो साड़ी पहनी अपनी मां को, गवार समझती रही। छोटे कपड़ों में लदे नग्न शरीर को, शिष्टाचार समझती रही। वो फेसबुक पर छोटे कपड़े पहनने की, स्वीकृति के लिए लड़ती रही। रात-रात भर जगकर कमेंट करती रही, लेकिन अंधियारी रातों में दिये तले पढ़कर, आजादी का पुरस्कार। सूट सलवार पहनने वाली, गांव की छोटी बेटी ले गई। विद्यालय से स्कॉलरशिप पाकर, विश्वविद्यालय की सीढ़ी चढ़ गई, घर के तीन बड़े बेटों से बढ़कर सम्मान पा गई। "आगे पढ़ने की स्वीकृति के लिए" समाज से लड़कर आज वह कस्बे की, पहली डॉक्टर मैडम बनकर आ गई। शहरी बेटी हक पाने की इच्छा में, अपने पाश्चात्य का पहनावा लेकर। मोहल्ले में बदनाम हो गई, गांव की बेटी सारे देश की मिसाल बन गई, अपने कस्बे का पहला सम्मान बन गई, #true_women_empowerment