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क़लाम -------- मुन्तज़िर सांसों का रूख़सते- वक़्त

क़लाम
--------

मुन्तज़िर सांसों का रूख़सते- वक़्त मुकर्रर हुआ है
लगा है दरिचो पर परदे हया के दीदे- दुभर हुआ है
                     ---
बे - सम्त  हवाओं  ने  फिर इस ओर रूख़ किया है
खुशी से ये दिल फिर से आसमां के बराबर हुआ है
                    ---
न उठा निग़ाहें हम पर कुछ तो दर्मियां राज़ रहने दे
दफ़्न है इन्हीं में हसरते-ख़्वाब जो उजागर हुआ है
                   ---
इक़  तेरे ही हिज़्र ने इस दिल को मज़रूह किया है
वर्ना दुन्यां में ऐसा कुछ नहीं जो न मयस्सर हुआ है
                  ---
बड़ी मुक़द्दुस-निग़ाहो से देखा किया है शामो-सहर
उन तल्ख़ निग़ाहों का क्या जो दिल पत्थर हुआ है
                   ---
जिस्म पे आ पड़ी जो ज़लालतो की बारिशें क्या हो
मज़बूर ये खाना-बदौश इस दुन्यां में बे-घर हुआ है
                  ---
' ललित'कौन आता है इस विरान में मेरा हाल पुछने
सुना है की कभी इस ओर तेरा रह - गुज़र हुआ है

©Lalit Saxena #good_night  'दर्द भरी शायरी'  'दर्द भरी शायरी'
क़लाम
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मुन्तज़िर सांसों का रूख़सते- वक़्त मुकर्रर हुआ है
लगा है दरिचो पर परदे हया के दीदे- दुभर हुआ है
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बे - सम्त  हवाओं  ने  फिर इस ओर रूख़ किया है
खुशी से ये दिल फिर से आसमां के बराबर हुआ है
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न उठा निग़ाहें हम पर कुछ तो दर्मियां राज़ रहने दे
दफ़्न है इन्हीं में हसरते-ख़्वाब जो उजागर हुआ है
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इक़  तेरे ही हिज़्र ने इस दिल को मज़रूह किया है
वर्ना दुन्यां में ऐसा कुछ नहीं जो न मयस्सर हुआ है
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बड़ी मुक़द्दुस-निग़ाहो से देखा किया है शामो-सहर
उन तल्ख़ निग़ाहों का क्या जो दिल पत्थर हुआ है
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जिस्म पे आ पड़ी जो ज़लालतो की बारिशें क्या हो
मज़बूर ये खाना-बदौश इस दुन्यां में बे-घर हुआ है
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' ललित'कौन आता है इस विरान में मेरा हाल पुछने
सुना है की कभी इस ओर तेरा रह - गुज़र हुआ है

©Lalit Saxena #good_night  'दर्द भरी शायरी'  'दर्द भरी शायरी'
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Lalit Saxena

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