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Ankit Arya Sam मैं क़तरा क़तरा गिर जाता हूँ, तू ढले

Ankit Arya Sam मैं क़तरा क़तरा गिर जाता हूँ,
तू ढले शाम सी थम जाती है ।
मैं ग़ुलाब सा महक उठता हूँ,
तू बेइन्तहां बादल सी बरस जाती है ।
मैं मुठ्ठी भरे रेत सा फिसल जाता हूँ,
तू हवाओं सी मचल उठती है । 
मैं क़तरा क़तरा......
मैं तारों सा जाग उठता हूँ,
Ankit Arya Sam मैं क़तरा क़तरा गिर जाता हूँ,
तू ढले शाम सी थम जाती है ।
मैं ग़ुलाब सा महक उठता हूँ,
तू बेइन्तहां बादल सी बरस जाती है ।
मैं मुठ्ठी भरे रेत सा फिसल जाता हूँ,
तू हवाओं सी मचल उठती है । 
मैं क़तरा क़तरा......
मैं तारों सा जाग उठता हूँ,