सङकें हैं सुनसान कहीं, और शांत पङी आज गलियाँ हैं। खुद संवरते जहाँ टुटी पंखुड़ियाँ भी, वहां रो रही आज कलियाँ हैं। श्मशान भरे कब्रिस्तान भरे, फिर भी शवों का अनगिनत ताता है। बंद पड़े मिन्नत की मुर्त सारे, और बंद हिं हौसलों का बसेरा है। ना जाने मेरे शहर को हुआ क्या है, शायद किसी कहर ने डाला डेरा है। कोई पङा सङक पर भुखा, कोई कंकङ के बिस्तर पर सोया है। कोई है प्रदेश फंसा, कोई लाचार घर में हीं रोया है। कोई है देवदुत बना, किसी ने दानव रूप उधेड़ा है। बिलख रहीं सांसें हर ओर, अन्नत अभी अंधेरा है। ना जाने मेरे शहर को हुआ क्या है, शायद किसी कहर ने डाला डेरा है। -Saurav na jane mere seher ko hua kya hai... #lockdown #diary