दो आँखे इंतज़ार मे सूरज को तकती जा रही बिखरी हैं रोशनी फिर भी उजियारा न देख पा रही निर्वस्त्र है शरीर कई आँखे उसे तकती जा रही सच ने कब का साथ छोड़ा आज इंसानियत मरती नज़र आ रही आँखे खुदा की भी आज बंद न हो पा रही मासूम को तड़पते देख आँसू वो बहा रही ख़ून की धारा पत्थर से निकलती जा रही माता भारती भी खुद को माँ का दर्जा न दे पा रही। #बेबसी