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दो आँखे इंतज़ार मे सूरज को तकती जा रही बिखरी हैं रो

दो आँखे इंतज़ार मे सूरज को तकती जा रही
बिखरी हैं रोशनी फिर भी उजियारा न देख पा रही

निर्वस्त्र है शरीर कई आँखे उसे तकती जा रही
सच ने कब का साथ छोड़ा आज इंसानियत मरती नज़र आ रही

आँखे खुदा की भी आज बंद न हो पा रही
मासूम को तड़पते देख आँसू वो बहा रही

ख़ून की धारा पत्थर से निकलती जा रही
माता भारती भी खुद को माँ का दर्जा न दे पा रही। #बेबसी
दो आँखे इंतज़ार मे सूरज को तकती जा रही
बिखरी हैं रोशनी फिर भी उजियारा न देख पा रही

निर्वस्त्र है शरीर कई आँखे उसे तकती जा रही
सच ने कब का साथ छोड़ा आज इंसानियत मरती नज़र आ रही

आँखे खुदा की भी आज बंद न हो पा रही
मासूम को तड़पते देख आँसू वो बहा रही

ख़ून की धारा पत्थर से निकलती जा रही
माता भारती भी खुद को माँ का दर्जा न दे पा रही। #बेबसी
aksingh0714

AK Singh

New Creator