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'राजपूत' ( अतीत के झरोखे से-02 ) अग्नि-पुराण के अ

'राजपूत' ( अतीत के झरोखे से-02 )

अग्नि-पुराण के अनुसार- चन्द्रवंशी कृष्ण और अर्जुन तथा सूर्यवंशी राम और लव-कुश के वंशज राजपूत थे।स्वयं 'राजपूत' भी इस कथन को सहर्ष स्वीकार करते हैं।इसी आधार पर श्री गहलोत ने भी लिखा है कि- "वर्तमान राजपूतों के राजवंश वैदिक और पौराणिक काल के सूर्य व चन्द्रवंशी क्षत्रियों की सन्तान हैं।ये न तो विदेशी हैं और न ही अनार्यों के वंशज।जैसा कि कुछ यूरोपीयन लेखकों ने अनुमान लगाया।डॉ दशरथ शर्मा भी लिखते हैं कि राजपूत सूर्य और चन्द्रवंशी थे। दशवीं शताब्दी में चरणों के साहित्य और इतिहास लेखन में राजपूतों को सूर्यवंशी व चन्द्रवंशी बताया है।
1274 ई. का शिलालेख जो चित्तौड़गढ़,
1285 ई. का शिलालेख जो अंकलेश्वर से प्राप्त हुए विशेष महत्व के हैं।
इससे पहले तेजपाल मन्दिर से प्राप्त-
1230 ई. के शिलालेख में राजा धूम्रपाल को सूर्यवंशी लिखा है।
सीकर जिले में हर्षनाथ मन्दिर से प्राप्त शिलालेख में 'चौहानों' को सूर्यवंशी लिखा है।
महर्षि वेदव्यास ने भी सूर्य-पुत्र वैवस्वतमनु से लेकर रामचंद्र तक सत्तावन राजाओं के नाम का उल्लेख किया है।
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'राजपूत' ( अतीत के झरोखे से-02 )

अग्नि-पुराण के अनुसार- चन्द्रवंशी कृष्ण और अर्जुन तथा सूर्यवंशी राम और लव-कुश के वंशज राजपूत थे।स्वयं 'राजपूत' भी इस कथन को सहर्ष स्वीकार करते हैं।इसी आधार पर श्री गहलोत ने भी लिखा है कि- "वर्तमान राजपूतों के राजवंश वैदिक और पौराणिक काल के सूर्य व चन्द्रवंशी क्षत्रियों की सन्तान हैं।ये न तो विदेशी हैं और न ही अनार्यों के वंशज।जैसा कि कुछ यूरोपीयन लेखकों ने अनुमान लगाया।डॉ दशरथ शर्मा भी लिखते हैं कि राजपूत सूर्य और चन्द्रवंशी थे। दशवीं शताब्दी में चरणों के साहित्य और इतिहास लेखन में राजपूतों को सूर्यवंशी व चन्द्रवंशी बताया है।
1274 ई. का शिलालेख जो चित्तौड़गढ़,
1285 ई. का शिलालेख जो अंकलेश्वर से प्राप्त हुए विशेष महत्व के हैं।
इससे पहले तेजपाल मन्दिर से प्राप्त-
1230 ई. के शिलालेख में राजा धूम्रपाल को सूर्यवंशी लिखा है।
सीकर जिले में हर्षनाथ मन्दिर से प्राप्त शिलालेख में 'चौहानों' को सूर्यवंशी लिखा है।
महर्षि वेदव्यास ने भी सूर्य-पुत्र वैवस्वतमनु से लेकर रामचंद्र तक सत्तावन राजाओं के नाम का उल्लेख किया है।
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