खुद को ढूँढना मुश्किल है! कहते हैं सिमट गयी है दुनियाँ बढ़ती रफ़्तार के साथ नहीं होती है अब तो बड़े -बड़े शहरों में रात फिर भी मिल न पाया अपनों से! कहाँ -कहाँ नहीं ढूँढ़ा नींद भी तो नहीं आयी कितनी बार आँखें मूँदा! दुनियाँ सिमट गई और अपने हो गए दूर रातें नहीं होतीं है अब फिर भी अँधेरा है भरपूर! रफ़्तार के इस खेल में मैं कितनी दूर चला आया? देखता हूँ पीछे मुड़कर दिखता नहीं अपना भी साया. बहरा कर देने वाले शोर में खुद को सुनना मुश्किल है! अपने क्या ख़ाक दिखेंगे जब खुद को ढूँढना मुश्किल है!! #changingworld #timechanges #reformation #selfishworld