धाक.. एक-दो पे नहीं, मेरी सैंकड़ों में थी ! और.. गिनती भी मेरी शहर के बड़ों-बड़ों में थी । दफ़्न.. छःफ़ीट के गड्ढे में कर दिया मुझको ! जब कि.. ज़मीन मेरे नाम तो एकड़ों में थी ।। #Kshitiz Rajkumar lines ©Rupesh Dewangan #Life