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धाक.. एक-दो पे नहीं, मेरी सैंकड़ों में थी ! और..

धाक..
एक-दो पे नहीं, 
मेरी सैंकड़ों में थी !
और.. 
गिनती भी मेरी शहर 
के बड़ों-बड़ों में थी ।
दफ़्न..
छःफ़ीट के गड्ढे में 
कर दिया मुझको !
जब कि..
ज़मीन मेरे नाम 
तो एकड़ों में थी ।।
#Kshitiz Rajkumar lines

©Rupesh Dewangan #Life
धाक..
एक-दो पे नहीं, 
मेरी सैंकड़ों में थी !
और.. 
गिनती भी मेरी शहर 
के बड़ों-बड़ों में थी ।
दफ़्न..
छःफ़ीट के गड्ढे में 
कर दिया मुझको !
जब कि..
ज़मीन मेरे नाम 
तो एकड़ों में थी ।।
#Kshitiz Rajkumar lines

©Rupesh Dewangan #Life