वसुंधरा की पूरी हो अभिलाषा जब जब इस पावन धरती पर मानवता अकुलाती है, पाप अषीम बढ़ जाता है, त्राहि त्राहि मच जाती है, पिचासिनीयां करती है नर्तन, असूर रुद्र हो जाते है, व्याधि बिकल होकर के जब मानव को तड़पाते है, यज्ञ बाधित होता है जब निशाचरों के महातांडव से, मयूर नाचने लगते है जब खुंखार गिद्धों के भय से, जब अन्याय अत्याचार के खंजर तले न्यायी काटे जाते है, जब भलमनसाहत के मस्तक पर भष्मासूर चढ़ जाते है, तब तब वसुंधरा के उद्धार हेतु कष्ट उठाना पड़ता है, देवी हो या देव रुप धर इस धरती पर आना पड़ता है। इतिहास बताता है हमें आततायियों के विनाश की गाथा, न्याय सदा होवे अमर यही वसुंधरा की रही अभिलाषा।। जब भारत की महाभूमि पर पाप शीष चढ़ जाता है, नारी के अस्तित्व पर जब घोर प्रश्न उठाया जाता है, जब कौरवों की कुटिलता चौसर की बिसात बिछती है, राजमोह जब अंधमार्ग चुन पापी के साथ विचरती है, जब गुरुजन शीष झुकाकर के अन्याय पर दंभ भरते हैं, पूजनीय ज्ञानीजन भी जब आंखे मींचे चूप रहते हैं, जब महासभा के बीच लज्जा का चीर उठाया जाता है, निर्लज्जता की वेदी पर नारी को नंगा नचाया जाता है, तब धर्म की रक्षा के लिए पूण्य गांडीव उठाना पड़ता है, संग्राम भूमि में कस कमर अर्जून को आना पड़ता है। वेद व्यास की वाणी में रचित है महाभारत की महागाथा, न्याय सदा होवे अमर यही वसुंधरा की रही अभिलाषा।। (क्रमश:) ©Tarakeshwar Dubey वसुंधरा