क्या हार में,क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं। समय का है पहरा सघन, विचलित नहीं हुआ मन। भले ही न भाग्य साथ दे, सफ़र में न कोई हाथ दे। मैं निरंतर अपने पग बढ़ा, लक्ष्य की ओर बढ़ चला। आज भी करता है प्रहार, विकार दुष्ट ये बार-बार। मैं भी सफ़ऱ करता रहा, ज़िंदगी को पढ़ता रहा। बुलंद हुआ हौसला मेरा, लोग सब ही देखते रहे। कारवां गुजर गया…… गुबार देखते रहे…….. क्या हार मैं, क्या जीत मैं किंचित नहीं भयभीत मैं। -अटल बिहारी वाजपेयी 🌺🌺🌺🌺🌺🌺 कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे।