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बुढ़ापे की उम्र के साल कितने भी हों, जीने हैं खुलक

बुढ़ापे की उम्र के साल कितने भी हों, जीने हैं खुलकर,
सोगवार न रहो, ख़ूब जियो सब यारों से मिलजुल कर।
सेवा निवृत्ति के बाद की ज़िंदगी है, आराम से जीने की,
ज़िंदगी में जो कमाया, उस की खुशी के जाम पीने की।

©Amit Singhal "Aseemit"
  #सोगवार