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इस शहर में अब घर की याद नहीं आती, लम्हें खुद से बन

इस शहर में
अब घर की याद नहीं आती,
लम्हें खुद से बनाने लगी हूं मैं।।
किसी अजनबी के पास आ जाने से,
खुद को भूलने लगी हूं मैं।।
अपनों से दूर गैरों के पास अाने लगी हूं मैं,
अनजान से जान और जान से अनजान,
बनते देखा है मैंने इस शहर में।।
अब फर्क नहीं पड़ता मिलने और बिछड़ने से,
क्योंकि अब तो हर सिलसिला अपना लगने लगा है इस शहर में।।। #sd grab jjhf
इस शहर में
अब घर की याद नहीं आती,
लम्हें खुद से बनाने लगी हूं मैं।।
किसी अजनबी के पास आ जाने से,
खुद को भूलने लगी हूं मैं।।
अपनों से दूर गैरों के पास अाने लगी हूं मैं,
अनजान से जान और जान से अनजान,
बनते देखा है मैंने इस शहर में।।
अब फर्क नहीं पड़ता मिलने और बिछड़ने से,
क्योंकि अब तो हर सिलसिला अपना लगने लगा है इस शहर में।।। #sd grab jjhf
ss9307464875658

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