छोड़ के सारे तराने आ गए मंजिलें अपनी बनाने आ गए देख मिट्टी में लिपटे बचपन को गाँव के दिन पुराने याद आ गए भूख के मंजर को देखा जब कभी नम हुई आँखें मगर हमने फेर ली जेब के चंद रुपये पर हाथ रख अपनी बेबसी के बहाने आ गए फूलों की राह समझा जिन्हें हमने चुभते काँटों की गलियाँ निकली मेहरब़ा, हमसफ़र बने थे जो कभी उन्हें ही नश्तऱ चुभोने आ गए जिनकी आहट से मुस्कान आती थी सरसराते पत्ते भी सुर-तान गाते थे मन का दामन हुआ छलनी इस कद़र हमें हसने-हसाने के तरीके आ गए #तराने