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दास्तान-ए-ग़म मैं किसी को बताउंगी नहीं अबसे, जो गुज़

दास्तान-ए-ग़म मैं किसी को बताउंगी नहीं अबसे,
जो गुज़र रही मुझपर मैं दिखाऊँगी नहीं अबसे।

सब कुछ जान कर भी सब अंजान बने बैठें हैं,
ग़म का अपने इक़ तिनका भी न उड़ाऊँगी अबसे।

ये बहारों का मौसम भी ख़िज़ा ही मेरे लिए लाता है,
के दिल सहरा, सहरा ही ये फ़िज़ा में भी रह जाता है।

किसी ख़ुशी से भी चेहरे की रंगत अब बदलती नहीं,
चट्टानों में रह रह कर ये पत्थर दिल अब पिघलती नहीं।

समीम-ए-कल्ब से चाहा सबको मेरा ये गुनाह रहा,
धज्जियाँ उड़ी इस दिल की दोष मेरा ही बेपनाह रहा।

सावन में भी इस बदन पर आग की लपटें बरसती है,
आँखों से बारह मास सावन बरसता, रूह तरसती है। ♥️ Challenge-776 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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दास्तान-ए-ग़म मैं किसी को बताउंगी नहीं अबसे,
जो गुज़र रही मुझपर मैं दिखाऊँगी नहीं अबसे।

सब कुछ जान कर भी सब अंजान बने बैठें हैं,
ग़म का अपने इक़ तिनका भी न उड़ाऊँगी अबसे।

ये बहारों का मौसम भी ख़िज़ा ही मेरे लिए लाता है,
के दिल सहरा, सहरा ही ये फ़िज़ा में भी रह जाता है।

किसी ख़ुशी से भी चेहरे की रंगत अब बदलती नहीं,
चट्टानों में रह रह कर ये पत्थर दिल अब पिघलती नहीं।

समीम-ए-कल्ब से चाहा सबको मेरा ये गुनाह रहा,
धज्जियाँ उड़ी इस दिल की दोष मेरा ही बेपनाह रहा।

सावन में भी इस बदन पर आग की लपटें बरसती है,
आँखों से बारह मास सावन बरसता, रूह तरसती है। ♥️ Challenge-776 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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nazarbiswas3269

Nazar Biswas

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