ज़िन्दगी की घूँट, कभी मीठा कभी खारा... फिर भी ना जाने क्यूँ लगता ये प्यारा... मैं डूबता साँझ सा , तू मचलती सी धारा... रहती उस पार तू , मैं रहता इस किनारा... चलते तो साथ साथ, फिर दूरी भी है , मिलने की चाह, ना मिल पाने की मजबूरी भी है, कुछ तमन्नाओं ने दम तोड़ दिया , कुछ एक ख्वाईश हुई यहाँ पूरी भी है , चाह कर भी ना बन पायें एक-दूजे का सहारा... मैं डूबता साँझ सा , तू मचलती सी धारा... रहती उस पार तू , मैं रहता इस किनारा... #NojotoQuote नदी के दो किनारे...