क्या ढूंढ रही हो खुद में तुम ? कुछ बाकी रह गया है क्या ? या किसी चीज की तलाश में हो तुम तुम ढूंढ रही हो शायद, उस बेपरवाह हंसी को , जो तुम्हारे होठों पर आ जाया करती थी I तुम ढूंढ रही हो, वो पहले से ख्वाब तुम्हारे जिनमें तुम अक्सर बह जाया करती थी I तुम ढूंढ रही हो, आईने में उस शख्स को जो मिलता नहीं अब तुम्हारे पुकारने पे, तुम को तो बसंत प्यारा था, अब पतझड़ में क्यों गुम हो तुम I आखिर, क्या ढूंढ रही हो तुम ? ©️saurvisingh Kavya - काव्य Hindi Panktiyaan ©Saurvi Singh क्या ढूंढ रही हो खुद में तुम ? कुछ बाकी रह गया है क्या ? या किसी चीज की तलाश में हो तुम तुम ढूंढ रही हो शायद, उस बेपरवाह हंसी को , जो तुम्हारे होठों पर आ जाया करती थी I