ना जाने क्यों... ये वक्त मुझे अब भी गिरने में लगा रहता हैं, गिरा कर .. हँसता हैं मुझपर। ये वक़्त... चाहता क्या हैं? कभी बताता नहीं। मुझे ही क्यों गिरता हैं?, पुछु कैसे ? कभी मिलता नहीं। क्या करूँ... इस वक्त का मैं क्या करूँ? ~इत्तु सा... इत्तु सा पैग़ाम वक्त के नाम। ना जाने क्यों... ये वक्त मुझे अब भी गिरने में लगा रहता हैं, गिरा कर .. हँसता हैं मुझपर। ये वक़्त... चाहता क्या हैं? कभी बताता नहीं। मुझे ही क्यों गिरता हैं?,