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।। ॐ ।। न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनो

।। ॐ ।।

न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनो
न विद्मो न विजानीमो यथैतदनुशिष्यात्।
अन्यदेव तद्विदितादथो अविदितादधि।
इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्व्याचचक्षिरे ॥

वहाँ न चक्षु जा सकता है, न वाणी, न ही मन। हम न 'उसे’ जानते हैं न यह जान पाते हैं कि ‘उसकी’ शिक्षा कैसे दी जाये; क्योंकि 'वह' विदित से अन्य है; तथा अविदित से भी परे है; 'वह' ऐसा है यह हमने उन पूर्वजों से सुना है जिन्होंने उस 'परतत्त्व' की हमारे बोध के लिए व्याख्या की है।

There sight travels not, nor speech, nor the mind. We know It not nor can distinguish how one should teach of It: for It is other than the known; It is there above the unknown. It is so we have heard from men of old who declared That to our understanding.

केनोपनिषद मंत्र ३ #Art #केनोपनिषद #उपनिषद
।। ॐ ।।

न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनो
न विद्मो न विजानीमो यथैतदनुशिष्यात्।
अन्यदेव तद्विदितादथो अविदितादधि।
इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्व्याचचक्षिरे ॥

वहाँ न चक्षु जा सकता है, न वाणी, न ही मन। हम न 'उसे’ जानते हैं न यह जान पाते हैं कि ‘उसकी’ शिक्षा कैसे दी जाये; क्योंकि 'वह' विदित से अन्य है; तथा अविदित से भी परे है; 'वह' ऐसा है यह हमने उन पूर्वजों से सुना है जिन्होंने उस 'परतत्त्व' की हमारे बोध के लिए व्याख्या की है।

There sight travels not, nor speech, nor the mind. We know It not nor can distinguish how one should teach of It: for It is other than the known; It is there above the unknown. It is so we have heard from men of old who declared That to our understanding.

केनोपनिषद मंत्र ३ #Art #केनोपनिषद #उपनिषद