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तारिफ़ में नग़मे तेरे ये शोख़ अदाएँ भी, कमबख़्त है साँ

तारिफ़ में नग़मे तेरे
ये शोख़ अदाएँ भी,
कमबख़्त है साँसे मेरी 
अब नाचे तेरे इशारे पे...
 DQ : 275 

हो हर मर्ज़ का इल्म
ऐसी वाबस्ता ये जिंदगी..,
हर हर्फ़ में शय तुम्हारा 
बहके हमसाये से....

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तारिफ़ में नग़मे तेरे
ये शोख़ अदाएँ भी,
कमबख़्त है साँसे मेरी 
अब नाचे तेरे इशारे पे...
 DQ : 275 

हो हर मर्ज़ का इल्म
ऐसी वाबस्ता ये जिंदगी..,
हर हर्फ़ में शय तुम्हारा 
बहके हमसाये से....

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