तेरा और मेरा शहर एक नहीं हैं कभी कभी तो रोज बात भी नहीं होती अच्छे से लेकिन फिर भी मैं हर खुशी सबसे पहले तुझे सुनाता हूँ हर दुःख पहले तुझे बताता हूँ तुझे लगता होगा कि मैं तुझे सोचता नहीं मैं कैसे तुझे ये बताऊं की मैं तेरे अलावा कुछ सोचता ही नहीं तुझको लगता होगा कि मैं महफ़िल में मगन रहता हुँ लेकिन मुझे महफ़िल में हर जगह तू हीं तो दिखाई देतीं हैं अगर तू यहाँ होतीं तो कैसा होता अगर तू वहाँ होतीं तो कैसा होता मुझे महफ़िल में झुमने का वक्त तब मिले ना जब मुझे तेरे ख्यालों से वक्त मिले अक्सर जो हमारे दूर होते हैं उन्हें लगता हैं कि हम उनके बिना कम्प्लीट हैं लेकिन नहीं.. मैं हर पल हर क्षण तुम्हे कहीं ना कहीं अपनी महफ़िल में खोज रहा होता हूँ याद कर रहा होता हुँ क्योंकि मेरा हर लम्हा हर पल तेरे बिना अधूरा ही होता हैं.. शब्दभेदी किशोर ©शब्दवेडा किशोर #मैं_और_मेरी_तन्हाई