चलो, सब कुछ शुरू से शुरू करते हैं... मन के आलों से हर एक चीज को बाहर निकाल काम-काम की चीजों को व्यवस्थित जमा लेते हैं। कुछ तुम्हारे मन का गुबार... कुछ मेरे मन की शिकायतें, लटक गई हैं बोझ बनकर...हमारे रिश्ते की डोर में, आओ इन्हे काटकर डोर का भार हल्का कर लेते है; चलो सब कुछ शुरू से शुरू करते हैं। देखा बहुत एक दूजे को, समाज की नजरों और पैमानों से। कुछ तुम्हारी हसरतें... कुछ मेरी चाहतें, दबी पड़ी हैं तकियों के नीचे; हम तुममें अब कैसी झिझक... आओ मन को साझा कर लेते हैं बनाकर स्वयं के पैमाने और कायदे चलो सब कुछ शुरू से शुरू करते हैं। अनिभाये कुछ वादे मेरे हैं और गलतियां कुछ तुम्हारी हैं अपने लिए दो पल नहीं और दिन भर सब की सुनते हैं व्यस्तता को दोष क्या देना... शाम को दो प्याली चाय लेकर आओ एक दूसरे की सुनते हैं चलो सब कुछ शुरू से शुरू करते हैं तुम मुझमें, मुझसे ज्यादा हो, मैं तुममें, तुमसे ज्यादा हूं। इतना भी हक ठीक नहीं इसको कहते प्रेम नहीं चंद पलों की छुट्टी लेकर खुद को अपने हवाले कर लेते हैं चलो, सब कुछ शुरू से शुरू करते हैं। ©Akarsh Mishra शुरू से शुरू करते हैं #beginning