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हम दोनोँ मैँ शब्द बनूँ, तुम गीत बनो । मिल कर

हम दोनोँ
मैँ  शब्द  बनूँ, तुम  गीत   बनो ।
मिल कर संगीत बन जायेँ हम,
बैठा है  प्रेम  दूर  क्षितिज  पर,
चलो,उसके घर सो जायेँ  हम।

मैं   रात  बनूँ   तुम  बात   बनो,
चलो ,एक दूजे को बहलायें हम,
प्रेम    का    ढाई   अक्षर    पढ़,
कुछ   प्रेम   तराने    गाएं   हम ।

मैं   पवन  बनूँ  तुम   मेघ  बनो,
चलो !   सैर    पर   जायें   हम,
देखें    धरती   का   हर   कोना, 
फिर   प्रेम  सुधा  बरसायें  हम ।

मैं वर्षा  बनूँ, तुम नद  धार बनो,
मिलकर  सागर  तक  जाएं हम,
कर  दें   सब   कुछ   न्योच्छावर , 
फिर,सागर  में  मिल  जाएं  हम ।

मैं  सूरज बनूँ  तुम  चाँद  बनो ,
जाकर  अम्बर  में   छायें  हम,
मिल  कर    फिर   दोनों   हम,
धरती  को   स्वर्ग  बनाएँ  हम।

मैं बाती  बनूँ  तुम  दीप   बनो!
मिल कर  ज्योत  जलाएं  हम,
हर   पथ  को   प्रकाशित  कर,
तमस   को  दूर   भगायें   हम ।

रचना-यशपाल सिंह "बादल"

©Yashpal singh gusain badal'
  मैँ  शब्द  बनूँ, तुम  गीत   बनो ।
मिल कर संगीत बन जायेँ हम,
बैठा है  प्रेम  दूर  क्षितिज  पर,
चलो,उसके घर सो जायेँ  हम।

मैं   रात  बनूँ   तुम  बात   बनो,
चलो ,एक दूजे को बहलायें हम,
प्रेम    का    ढाई   अक्षर    पढ़,

मैँ शब्द बनूँ, तुम गीत बनो । मिल कर संगीत बन जायेँ हम, बैठा है प्रेम दूर क्षितिज पर, चलो,उसके घर सो जायेँ हम। मैं रात बनूँ तुम बात बनो, चलो ,एक दूजे को बहलायें हम, प्रेम का ढाई अक्षर पढ़, #कविता

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