गीत- घणो ललचावे मन थारो मारी तितरड़ी(हाड़ौती भाषा) -------------------------------------------------------------------- (शेर)- हो ग्यो आबाद घर वू , जिण घर तू आई है। रोज बणे पकवान वहाँ, तू दिवाळी लाई है।। बदल दी तूने सूरत, उण घर और भरतार री। खुशकिस्मत है मर्द वू , जिणकी किस्मत में तू आई है।। ---------------------------------------------------------------- घणो ललचावे मन थारो, मारी तितरड़ी। नहीं मन पे बस थारो, मारी तितरड़ी।। घणो ललचावे मन--------------------।। ले जावे बाजार मनै तू , चाट कचौरी खावा नै। होटल माय लड्डू मिठाई, पानीपुड़ी खावा नै।। रसगुल्ला घणा पसंद तनै, मारी तितरड़ी। नहीं मन पे बस थारो, मारी तितरड़ी।। घणो ललचावे मन---------------------।। करे रोजाना शॉपिंग तू , रोज बाजारा जाकर। करे जेब मारी खाली तू , मनै बाजार ले जाकर।। गहना कपड़ा रो तनै है शौक, मारी तितरड़ी। नहीं मन पे बस थारो, मारी तितरड़ी।। घणो ललचावे मन-----------------------।। घूमने जावाने तू ,भरे चुमटयाँ मारे। मीठी मीठी बातां कर, डाले डोरा मारे।। करे मारुति मं तू सैर, मारी तितरड़ी। नहीं मन पे बस थारो, मारी तितरड़ी।। घणो ललचावे मन-----------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #राजस्थानी गीत