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चलो फ़िर से मोहब्बत पे ग़ज़ल एक बार लिखते हैं, तुम

चलो फ़िर से मोहब्बत पे ग़ज़ल एक बार लिखते हैं,
तुम्हारे नाम के आगे ही अपना नाम लिखते हैं।

अलग यह बात है मेरी मोहब्बत तुम नहीं समझे,
मगर जान ए तमन्ना तुम पे हम दीवान लिखते हैं।

वफा किसको यहां मिलती है इस दौर ए ज़रूरत में,
सनम मेरी वफा देखो तुम्हें हम जान लिखते हैं।

अभी भी वक्त है बाहों में तुम मेरी चली आओ,
के अपनी जिंदगी की हम तुम्हें अरमान लिखते हैं।

मुसलसल रात दिन तुम पर ग़ज़ल मैं कहता रहता हूं,
तुम्हें हम अपने होठों की सनम मुस्कान लिखते हैं।

आसिफ़ ने आज तक इस दौर में चाहा तो बस तुमको,
वफा की है ज़िया मुझ में, तुम्हें दिलशान लिखते हैं।

©Asif Hindustani Official
  चलो फ़िर से मोहब्बत पे ग़ज़ल एक बार लिखते हैं

Writer: Asif Hindustani 


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