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फिसल गया दाना मुंह से,सोच इस बात को हताश होना क्यो

फिसल गया दाना मुंह से,सोच इस बात को हताश होना क्यों!
चींटी की तरह कोशिश जारी रखो, छोड़ कोशिश भी निराश होना क्यों!
सामने पर्वत है तो क्या हुआ,
फिसल फिसल के चढ़ जाओ,मन का भी विश्वास खोना क्यों!
            ( सर्वाधिकार सुरक्षित )
🌹🌹🌸💮🌸🌹🌹
कवि " हेम राज "
[ 8626884044 ]
✍️✍️✍️ युवा कवि एवं गीतकार " हेम राज " द्वारा रचित कविता।
फिसल गया दाना मुंह से,सोच इस बात को हताश होना क्यों!
चींटी की तरह कोशिश जारी रखो, छोड़ कोशिश भी निराश होना क्यों!
सामने पर्वत है तो क्या हुआ,
फिसल फिसल के चढ़ जाओ,मन का भी विश्वास खोना क्यों!
            ( सर्वाधिकार सुरक्षित )
🌹🌹🌸💮🌸🌹🌹
कवि " हेम राज "
[ 8626884044 ]
✍️✍️✍️ युवा कवि एवं गीतकार " हेम राज " द्वारा रचित कविता।