उफ सी निकल गई बस पढ़ती गई, ना तुम रहे ना वो यादें, बहती रही मिलती रही ,.to be contd.............. कुछ कहानियां बुनी हीं अधूरी होने के लिए फिर भी जन्म जन्म की प्यास बुझाने के लिए लिखी गई , उफ़ सी निकल गई बस पढ़ती गई, ना तुम रहे ना वो यादें, बहती रही मिलती रही ख़ुद को समझने टटोलने में ख़ुद को भूलती गई, पहचान तेरे से मिली ,पाया ख़ुद को था , खुफुसाहट के खिलाफ़ भी आज खड़ी होने की हिम्मत जुटा रही थी मानो सुकून के गहराइयों में उतरे संबंध मेरी रूह से निकल कर जवाब मांग रहीं थी